मुझको अपने शहर ले चलो
है दूर फिर भी मगर ले चलो
जिधर ज़िन्दगी है उधर ले चलो
ज़रा ज़ल्द ए रहगुज़र ले चलो
लिखता रहेगा वहाँ बैठ कर ,
उसे काग़ज़ों के घर ले चलो
कश्ती खुद ही चला लेंगे हम
माँझी नहीं तुम अगर ले चलो
कई रंग की है ये ज़िन्दगी
कभी ग़म कभी खुश खबर ले चलो
ए वक़्त ठहरो ,वो रूठे नहीं
ज़रा सी छुपा के नज़र ले चलो
ले कर कलम ,काग़ज़ ,दवात
आज तुम भी कोई हुनर ले चलो
गुलशन को अपने सजाने को तुम
मेरे नज़्म की ये शज़र ले चलो
रख लो जहाँ भर के तुम आंकड़े
है नील की ख्वाइश शिफर ले चलो
बस ले चलो .... साथ साथ चलते जाएँ .... बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ख्याल
ReplyDeletelajawab-***
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