दिल-ओ-जान से आज ख़त लिख रहा हूँ !!
ढूँढा है उनकी मासूमियत को शहर में
उसी शहर की शराफत लिख रहा हूँ !!
नसीम-ए-शाम भी है, दरिया भी है
उनकी करम-ओ-रहमत लिख रहा हूँ !!
गुल गुलशन के उनकी याद दिला देते हैं
उनकी ही दुआ -ओ-मुरब्बत लिख रहा हूँ !!
बरसार-ए-आम हो जाए ये मोहब्बत
आज अपनी वफ़ा -ओ-ग़ैरत लिख रहा हूँ !!
ढूँढा है उनकी मासूमियत को शहर में
उसी शहर की शराफत लिख रहा हूँ !!
नसीम-ए-शाम भी है, दरिया भी है
उनकी करम-ओ-रहमत लिख रहा हूँ !!
गुल गुलशन के उनकी याद दिला देते हैं
उनकी ही दुआ -ओ-मुरब्बत लिख रहा हूँ !!
बरसार-ए-आम हो जाए ये मोहब्बत
आज अपनी वफ़ा -ओ-ग़ैरत लिख रहा हूँ !!